राम रहीम के यौन शोषण मामले में 7 साल बाद हाईकोर्ट में सुनवाई, सीबीआई को कोर्ट की फटकार
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के साध्वी यौन शोषण मामले में सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने सुनवाई के दौरान सीबीआई द्वारा मामले से संबंधित रिकॉर्ड के निरीक्षण के लिए समय मांगने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि, "तारीख पाने के लिए पर्ची डालना जरूरी है।"
इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तारीख तय की गई है। गौरतलब है कि राम रहीम ने 2017 में सीबीआई कोर्ट द्वारा सुनाई गई 20 साल की सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
सात साल बाद शुरू हुई सुनवाई
यह याचिका 7 साल पहले दाखिल की गई थी, लेकिन सुनवाई अब जाकर शुरू हुई है। राम रहीम ने अपनी अपील में कहा कि सीबीआई कोर्ट ने साक्ष्यों और गवाहों को सही तरीके से परखा नहीं और उसे दोषी ठहराया।
राम रहीम ने यह भी दलील दी कि गुमनाम शिकायत के आधार पर 3 साल की देरी से एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके अलावा, पीड़िताओं के बयान घटना के 6 साल बाद रिकॉर्ड किए गए। वहीं, साध्वियों ने सजा बढ़ाकर उम्रकैद करने की मांग की है।
सीबीआई के तर्क और हाईकोर्ट की फटकार
सीबीआई ने अदालत को बताया कि वर्ष 1999 में यौन शोषण की घटना हुई थी, लेकिन बयान 2005 में दर्ज किए गए। सीबीआई का कहना था कि पीड़िताओं पर किसी प्रकार का दबाव नहीं था। हालांकि, राम रहीम ने अपनी याचिका में दावा किया कि सीबीआई के संरक्षण में रहने के कारण पीड़िताएं दबाव में थीं।
हाईकोर्ट ने मामले में देरी पर सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई और मामले को तेजी से आगे बढ़ाने की हिदायत दी।
राम रहीम का पक्ष
राम रहीम ने अपील में यह भी दावा किया कि सीबीआई ने उसकी मेडिकल जांच नहीं करवाई, जो उसके पक्ष में जा सकती थी। उसने अदालत से अपील की है कि लगाए गए आरोप खारिज किए जाएं और सजा रद्द की जाए।
सजा का इतिहास
राम रहीम को 2017 में दो साध्वियों से यौन शोषण के मामले में 10-10 साल की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और रणजीत सिंह हत्याकांड में उसे उम्रकैद की सजा हुई है।
सजा सुनाए जाने के बाद पंचकूला में भारी हिंसा हुई थी, जिसमें 40 से अधिक लोग मारे गए थे।
आगे की कार्रवाई
अब 10 दिसंबर को हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी। वहीं, साधुओं को नपुंसक बनाने के एक अन्य मामले में राम रहीम की मुश्किलें और बढ़ने की संभावना है।
निष्कर्ष
राम रहीम के मामले में 7 साल बाद सुनवाई शुरू होना न्याय प्रक्रिया में देरी का उदाहरण है। सीबीआई और अन्य एजेंसियों की कार्यशैली पर अदालत की फटकार से स्पष्ट है कि निष्पक्ष और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है।
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