क्या BRICS अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करेगा? वैश्विक व्यापार में नई मुद्रा की चर्चा

 क्या BRICS अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करेगा? वैश्विक व्यापार में नई मुद्रा की चर्चा


हाल के वर्षों में वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) समूह के बढ़ते प्रभाव ने एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है: क्या BRICS अमेरिकी डॉलर को वैश्विक व्यापार में रिप्लेस करने के लिए तैयार है? इस मुद्दे पर चर्चा तेज हो गई है, विशेष रूप से 2023 के जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन के बाद, जहाँ BRICS देशों ने अपनी खुद की मुद्रा बनाने की संभावनाओं पर विचार किया।

BRICS की मुद्रा: एक रणनीतिक कदम

BRICS देशों के बीच अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की चर्चा लंबे समय से होती आ रही है। बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों, विशेष रूप से रूस और चीन के संबंधों में आए बदलावों और अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण BRICS देश अब डॉलर के विकल्प की तलाश कर रहे हैं। BRICS का उद्देश्य एक ऐसी मुद्रा प्रणाली तैयार करना है जो वैश्विक व्यापार में डॉलर की जगह ले सके और व्यापारिक सौदों में स्थिरता प्रदान कर सके।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि BRICS देश अपनी साझा मुद्रा या अन्य वैकल्पिक व्यवस्था पर काम करते हैं, तो यह अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है। इस विचार के पीछे मुख्य रूप से डॉलर की मंहगाई और उसकी वैकल्पिक मुद्राओं के उपयोग में स्थिरता की कमी को लेकर चिंता है।

क्या BRICS डॉलर को पूरी तरह रिप्लेस कर पाएगा?

यद्यपि BRICS के पास वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करने की संभावनाएं हैं, लेकिन यह कार्य सरल नहीं होगा। अमेरिकी डॉलर वर्तमान में वैश्विक व्यापार और रिज़र्व मुद्रा के रूप में स्थापित है। दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं डॉलर में व्यापार करती हैं और वैश्विक वित्तीय संस्थान भी डॉलर में ही संचालित होते हैं।

BRICS के भीतर भी चीन और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अलग-अलग आर्थिक हित हैं, जिससे साझा मुद्रा प्रणाली की दिशा में ठोस कदम उठाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, यह देखा जा रहा है कि BRICS देशों के बीच डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने की प्रथाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम करने का संकेत मिलता है।

डॉलर के वर्चस्व को कैसे चुनौती देगा BRICS?

BRICS देशों ने वैश्विक व्यापार में अपनी मुद्रा व्यवस्था के विचार को और आगे बढ़ाने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए हैं। इन कदमों में प्रमुख है New Development Bank (NDB) की स्थापना, जिसका उद्देश्य BRICS देशों और अन्य विकासशील देशों को वित्तीय मदद देना है। यह बैंक डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं में ऋण प्रदान करता है, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हो रही है।

इसके अलावा, रूस और चीन ने हाल के वर्षों में कई व्यापारिक समझौतों को अमेरिकी डॉलर के बजाय अपनी-अपनी स्थानीय मुद्राओं में किया है। भारत भी इस दिशा में अग्रसर है, जहां रुपया-रियाल और रुपया-रूबल जैसे द्विपक्षीय व्यापार सौदों पर चर्चा हो रही है। इससे BRICS देशों के बीच व्यापारिक संबंध और अधिक मजबूत हो रहे हैं और डॉलर की आवश्यकता कम हो रही है।

भविष्य की संभावनाएँ

भले ही BRICS अमेरिकी डॉलर को पूरी तरह से रिप्लेस नहीं कर सके, लेकिन यह निश्चित रूप से वैश्विक व्यापार में डॉलर के प्रभुत्व को कमजोर कर सकता है। BRICS की साझा मुद्रा, अगर अस्तित्व में आती है, तो यह विकासशील और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक मजबूत विकल्प हो सकती है।

BRICS का उद्देश्य वैश्विक व्यापार में डॉलर पर निर्भरता को कम करना और वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में विविधता लाना है। अगर यह समूह अपनी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू कर पाता है, तो यह वैश्विक वित्तीय ढांचे में एक बड़ा परिवर्तन होगा।

निष्कर्ष

हालांकि BRICS अभी भी अपनी मुद्रा के लिए योजनाएँ बना रहा है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह समूह अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने की दिशा में गंभीरता से काम कर रहा है। साझा मुद्रा की स्थापना और डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं में व्यापार के प्रयासों से यह संकेत मिलता है कि BRICS भविष्य में एक वैकल्पिक वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की नींव रख सकता है।

लेकिन इस प्रक्रिया को साकार करने में समय लगेगा, और इसमें शामिल सभी देशों की आर्थिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी। हालांकि, यह बदलाव वैश्विक वित्तीय परिदृश्य पर अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।

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