सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति: बदलाव के साथ नए संदेश का प्रतीक

 सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति: बदलाव के साथ नए संदेश का प्रतीक



नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति स्थापित की गई है, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। नई मूर्ति में न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उनके हाथ में तलवार के स्थान पर संविधान की किताब दी गई है। यह परिवर्तन भारत के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देशन में किया गया है, जिसका उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि भारत में कानून अंधा नहीं है, बल्कि यह न्यायपूर्ण और संविधानिक है।

नयी मूर्ति को सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में स्थापित किया गया है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मूर्ति के निर्माण का आदेश दिया था, क्योंकि पुरानी मूर्ति में दिखाए गए अंधे कानून और सजा के प्रतीक अब समय के हिसाब से प्रासंगिक नहीं थे।

पुरानी मूर्ति की आंखों पर पट्टी का मतलब था कि कानून सभी के साथ समान व्यवहार करता है, जबकि हाथ में तलवार का होना यह दर्शाता था कि कानून के पास शक्ति है और वह गलत करने वालों को दंडित कर सकता है। हालांकि, नई मूर्ति में एक तत्व जो जस का तस है, वह है तराजू। मूर्ति के एक हाथ में तराजू यह दर्शाता है कि न्यायालय किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों की बात को ध्यान से सुनता है, और यह संतुलन का प्रतीक है।

मूर्ति का ऐतिहासिक संदर्भ

न्याय की देवी, जिसे सामान्यतः अदालतों में देखा जाता है, वास्तव में यूनान की देवी जस्टिया का प्रतीक है। जस्टिया के नाम से ही 'जस्टिस' शब्द आया है। उनकी आंखों पर बंधी पट्टी निष्पक्षता का प्रतीक है। पहली बार 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अधिकारी ने इस मूर्ति को भारत में लाया था, जो एक न्यायालय अधिकारी थे। इसके बाद, 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक उपयोग बढ़ा। भारत की आजादी के बाद भी इस प्रतीक को अपनाया गया।

निष्पक्षता का संदेश

जैसा कि नई मूर्ति में बदलाव किया गया है, यह एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है: न्याय की देवी हमेशा निष्पक्षता के साथ निर्णय लेंगी। आंखों पर पट्टी न होने का मतलब है कि न्याय का निर्णय केवल व्यक्तिगत दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि न्याय और संविधान के मूल्यों पर आधारित होगा। यह बदलाव आज के समय की जरूरत को दर्शाता है, जिसमें सच्चे न्याय का निष्पक्ष और बिना भेदभाव के होना आवश्यक है।

इस नई मूर्ति के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि भारतीय न्याय प्रणाली का आधार निष्पक्षता, संवैधानिकता और संतुलन है।

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