हिमाचल प्रदेश में पेंशनरों का सरकार के खिलाफ मोर्चा, मंत्रियों और विधायकों के कार्यक्रमों का करेंगे घेराव
पेंशनर्स की मुख्य मांगें
पेंशनरों का कहना है कि जनवरी 2016 से लेकर दिसंबर 2021 तक सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को अभी तक पेंशन का पूरा लाभ नहीं मिला है। इसके अलावा 12 प्रतिशत डीए और छठे वेतन आयोग का एरियर अभी भी लंबित है। पेंशनर्स लंबे समय से कम्यूटेशन राशि की कटौती को 10 साल बाद समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। वहीं, पेंशनर्स जेसीसी (जॉइंट कंसल्टेटिव कमेटी) के गठन की भी मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी समस्याओं को हल किया जा सके।
विरोध प्रदर्शन तेज करने की तैयारी
आत्मा राम शर्मा ने बताया कि 20 सितंबर को पेंशनरों ने जिला मुख्यालयों और ब्लॉक स्तर पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए थे, लेकिन सरकार ने अभी तक वार्ता के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। पेंशनरों का कहना है कि यदि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती, तो वे मंत्रियों और विधायकों के सार्वजनिक कार्यक्रमों का घेराव करेंगे।
विधायकों को ज्ञापन देने का निर्णय
पेंशनर्स सबसे पहले सभी विधायकों को ज्ञापन देंगे, ताकि उनकी मांगों को आगे बढ़ाया जा सके। आत्मा राम शर्मा ने कहा, "अगर फिर भी सरकार हमारी बात नहीं सुनती, तो हम मंत्रियों और विधायकों के कार्यक्रमों के बाहर प्रदर्शन करेंगे।"
आक्रोश रैली की चेतावनी
पेंशनरों का कहना है कि यदि दशहरे तक उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे दीवाली से पहले शिमला में एक बड़ी आक्रोश रैली करेंगे। पेंशनर्स इस रैली के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाएंगे कि उनकी लंबित मांगों को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रदर्शन प्रदेशभर में विभिन्न स्थानों पर आयोजित किया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस को मनाया काले दिन के रूप में
आज अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर पेंशनरों ने इसे "काला दिन" के रूप में मनाया। आत्मा राम शर्मा ने कहा कि सरकार से उन्हें काफी उम्मीदें थीं, लेकिन उनके साथ हुई अनदेखी के कारण पेंशनरों का आक्रोश और बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि पेंशनरों ने कई बार अपनी समस्याओं को सरकार के सामने रखा, लेकिन उनकी मांगों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
सरकार की ओर से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा
अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से पेंशनरों की मांगों पर कोई आधिकारिक बयान या प्रतिक्रिया नहीं आई है। पेंशनरों का मानना है कि अगर उनकी मांगों को जल्द नहीं माना गया, तो वे और भी उग्र आंदोलन करेंगे।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सुक्खू सरकार इस बढ़ते आंदोलन का सामना कैसे करती है और पेंशनरों की मांगों पर क्या कदम उठाती है।
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